अरविन्द बत्तीसी
‘अरविन्द केजरीवाल तुम्हें समझना होगा’-
‘अरविन्द केजरीवाल तुम्हें समझना होगा’-
1.
तुमने पाले कुछ शाश्वत आदर्श
जो सिर्फ किताबों में मिलते थे
भूल चुके थे जिन्हें सभी हम
जो कभी व्यवहारों में पलते थे
2.
तुम हठ कर बैठे जिद्दी कहीं के
क्या कभी ऐसा भी होता है
स्वच्छ शुद्ध जल से कभी
क्या सागर पूरा बनता है
3.
सिर्फ सीमेंट से क्या कभी
कोई भवन निर्मित होता है
रेत कंकण का महत्व
क्या उनमें नहीं होता है ?
4.
भ्रष्ट जनों को राजनीती से
हटानें की मुहिम चलाई क्यूँ
आदी हैं जन जब इसके ही
तो तुमने आग लगाई क्यूँ
5.
स्वराज्य के भी मीठे सपने
तुमने आस जगाई क्यूँ
सदियों से भूली मानवता की
तुमने प्यास जगाई क्यूँ
6.
भारत के जनतंत्र का असली
मतलब पहले समझो तुम
जनता चुनती है "राजा"
"रंक "नहीं जरा समझो तुम
7.
ये भारतवासी सदा से
क्षत्रिय राजाओं की पूजा करते हैं
यहाँ सिंहासनों पर कभी
"सुदामा"नहीं बैठा करते हैं
8.
जनता बस शासक चुनती है
जनता का नहीं है शासन यहाँ
'सुपरमैन'है बसता दिलों में
'कॉमनमैन' नहीं है वहां
9.
हम जादूगरों के हैं पुजारी
जो चमत्कार बतलाते हैं
हम भ्रम में जीने के आदी
सपनों में जीवन बिताते हैं
10.
हम हैं गरीब किन्तु सदा से
वैभव की भक्ति वाले हैं
हम भय में जीने के आदी
वैसी ही किस्मत वाले हैं
11.
तुम निर्भय दुस्साहसिक बनकर
क्यों हमको भी भरमाते हो
ये धरना प्रदर्शन जेल बेल
क्यों हमको लड़ना सिखाते हो
12.
तुम नहीं जानते क्या है सुख
सदा बलवान की भक्ति में
क्यों परिवर्तन की आस जगाते
क्या रखा हमारी निज शक्ति में
13.
तुम पास हुए तुम फेल हुए
हमने तो बस इतना जाना है
भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार है
हमने तो बस इतना माना है
14.
राजनीती है गंदों का काम
हम यही मानते आये थे
हम मतदाता नाम के हैं
बस यही जानते आये थे
15.
तुम आ गये पता नहीं कहाँ से
अच्छे लोगों को भी रूचि हुई
शुचिता के लगे हम स्वप्न देखने
क्या हमसे यह भूल हुई
16.
कभी सीधे चलते कभी भूलें करते
हम आम आदमी अदने से
चमड़ी है नहीं मोटी हमारी
डरते हैं कांटा चुभने से
17.
तुम इन्कलाब की बात हो करते
'मत डरो अब सर भी कटाने से '
अरे शांति से जीनें दो
क्या बिगड़ता सर को झुकाने से
18.
अब तुम भी थोड़ा ढल जाओ
वक्त के अनुसार बदल जाओ
पहनो राजा से तुम भी वस्त्र
हो साथ सुरक्षा मय अस्त्र शस्त्र
19.
तुम जमीं पर कम ही चला करो
सदा विमान से उड़ा करो
रखो हेलीकाप्टर निज़ी विशेष
तुम दिखो मनुष्यों में अशेष
20.
सबके विकास की बात करो
पर पहले निज का ही करो
बातें सादगी की किया करो
पर विलासिता में दिखा करो
21.
तुम राजा जैसे दिखा करो
प्रजा तभी करेगी मतदान
अन्दर से चाहे जैसे रहो
पर दिखाते रहो सदा ईमान
22.
जनता शासक के रूप में
सदा चाहती है भगवान्
तुम हार गए अरविन्द यहाँ
दिख जो गए यहाँ तुम इंसान
23.
तुम हो विष्णु के अवतार
जरा समझा देते एक बार
तुम हो अल्ला के पैगम्बर
बात इतनी डाल देते अन्दर
24.
क्रय करते चैनल समाचारपत्र
कार्पोरेट से मिला लेते हाथ
चांदी तुम्हारी भी हो जाती
कुछ माफियाओं का ले लेते साथ
25.
कुछ साम्प्रदायिकता कुछ क्षेत्रवाद
कुछ साम्प्रदायिकता कुछ क्षेत्रवाद
कुछ जातिवाद कुछ समाजवाद
कुछ प्रदर्शन कुछ आन्दोलन
कुछ संगोष्ठी कुछ सम्मलेन
26.
इन सबको मिलाकर एक साथ
एक नशीला मसाला बना लेते
ईमानदारी और नैतिकता की
चासनी में मिला कर चटा देते
27.
फिर देखते उसका प्रभाव
जनता नशे में आ जाती
भूलकर अपने रंजो गम
तुम्हें सिंहासन दिलवा देती
28.
अपने ईमानदारी के आटे में
बेईमानी नमक सी मिला लेते
सही स्वाद रोटी में आ जाता
जनता को वो ही भा जाता
29.
पर तुमको भाई जेल वही
जहाँ अन्ना जैसे सोये थे
वो नहीं थे सिंहासन के मुरीद
तुम राजनीती में खोये थे
30.
अरे व्यवस्था में परिवर्तन
सत्ता में आने के बाद करो
पहले सत्ता तक का सफ़र
इन तरकीबों से पार करो
31.
तुम्हें पता है सच्चाई वालों का
दुनिया में हश्र क्या होता है
सुकरात को मिलता है जहर
ईसा सूली पर टंगता है
32.
आसान नहीं दुनिया को बदलना
तुम्हें खुद ही अब बदलना होगा
जनता त्रस्त भी है भ्रष्ट भी है
अरविन्द तुम्हें समझना होगा
"चालीसा लिख सकत हैं
पर नहीं हो तुम भगवान्
बत्तीसी में संतोष धरो
रे अरविन्द आम इंसान "
-कुमार अनेकांत
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