Tuesday, December 9, 2014

swadhyay ka mahatv


विणयेण सुदमधीदं जदि वि पमादेण होदि विस्सरिदं।
तमुवट्ठादि परभवे केवलणाणं च आवहदि ।। -मूलाचार ५/८९

यदि विनयशील हो 
पढ़ा शास्त्र 
और कदाचित्
विस्मृत हुआ प्रमाद से 
फिर भी वह जाता नहीं 
निर्मल आत्मस्वभाव से
प्रकट होकर किसी जन्म में
वो कारण बनेगा मुक्ति का
अतीन्द्रिय सुख और सर्वज्ञता भी
सहज मिले स्वाध्याय से
                        -कुमार अनेकांत

गाथार्थ - जो प्राणी विनयपूर्वक श्रुत/शास्त्र को पढ़ता है और वह पढ़ा गया श्रुत आदि यदि प्रमाद से कभी विस्मृत भी हो जावे, तो अगले भव में वह कभी न कभी उपलब्ध हो जाता है तथा केवलज्ञान (सर्वज्ञता)प्राप्त कराने में भी वह स्वाध्याय कारण बन जाता है।